आज के दिन देवता अवतरित होते है कशी में ?

वाराणसी. काशी मंदिरों, घाटों और पुरातन परंपराओं की धरती कहलाती है। बनारस की गिनती विश्व के उन प्राचीनतम शहरों में होती है, जहां मानवता और संस्कृति का अस्तित्व सदा ही बना रहता है। शायद इसीलिए इतने लंबे कालखंड में इसका पौराणिक महत्व कभी कम नहीं हुआ। कहते हैं धरावासियों द्वारा दीपावली मनाने के एक पक्ष बाद कार्तिक पूर्णिमा पर देवताओं की दीपावली होती है। दीपावली मनाने के लिए देवता स्वर्ग से काशी के पावन गंगा घाटों पर अदृश्य रूप में अवतरित होते हैं और महा आरती में शामिल श्रद्धालुयों के मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। शास्त्रों में वर्णित है कि इस दिन तीनों लोकों पर राज करने वाले त्रिपुरासुर दैत्य का वध हुआ था।
1. आचार्य ऋषि दिवेदी ने बताया कि कार्तिक मास में दो दीपावली पड़ती हैं। अमावस्या के दिन मनुष्यों की और कार्तिक पूर्णिमा को देवताओं की दीपावली। शास्त्रों में वर्णित है कि तीनों लोक त्रिपुरासुर दैत्य के आतंक से आतंकित था। देवताओं पर अत्याचार और उनको तप से रोकने के लिए त्रिपुरासुर ने बहुत स्वर्ग लोक पर भी अपना आधिपत्य जमा लिया था। त्रिपुरासुर ने प्रयाग में काफी दिनों तक तप किया था। इससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने दर्शन दिया था। ब्रह्मा से ही त्रिपुरासुर ने वरदान मांगा था।
 2. दैत्य त्रिपुरासुर के तप से तीनों लोक जलने लगा था। त्रिपुरासुर ने ब्रह्मा से वरदान में मांगा कि उन्हें कोई देवता स्त्री, पुरुष, जीव-जंतु,पक्षी, निशाचर न मार पाए। इसी वरदान से त्रिपुरासुर अमर हो गया था।

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