सतुआ बाबा ने किया था मुर्दे को जिन्दा , गंगा से निकली थी सोने के सिक्के
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सतुआ बाबा कई-कई दिनों तक साधना में लीन रहा करते थे। बाबा महाश्मशान
मणिकर्णिका घाट पर छोटी सी कुटिया में समाधिस्थ ही रहा करते थे। एक दिन
बनारस के उस समय के सबसे बड़े सेठ पुरुषोत्तम अग्रवाल का निधन हो गया। उनके
शव को सैकड़ों लोग दाह संस्कार के लिए महाश्मशान मणिकर्णिका घाट ले आए। शव
को गंगा स्नान कराया जा रहा था। पूरा परिवार विलाप कर रहा था। सेठ कि युवा
पत्नी बदहवास होए जा रही थी। परिवार के लोग बगल के चबूतरे पर साधना में लीन
बाबा के पास लेकर गए।
पत्नी ने बाबा को प्रणाम किया और बाबा ने आशीर्वाद दिया सौभाग्यवती भवः। उधर मृत सेठ के शरीर में कंपन होने लगी। बाबा ने पत्नी से बोला बैठ जाओं, उधर मृत सेठ को स्नान करा रहे लोग हैरान हो गए। सेठ का धीरे-धीरे हाथ पांव सांसे सब चलने लगी और वह मृत से जीवित हो उठे। सैकड़ों लोगों ने इस चमत्कार को जब देखा तो वह बाबा को दंडवत करने लगे। सेठ के परिजन आज भी बाबा के आश्रम में सेवा करते हैं। संत सेवा में अग्रणी गुजरात के रघुभाई डाया ठक्कर एक बार तीर्थ को काशी आए थे। रास्ते में एक जगह लुटेरों ने उनको लूट लिया। इस घटना से वह पूरी तरह से विचलित और भयभीत हो गए थे। काशी दान पुन्य को पहुंचे रघुभाई के पास खुद खाने को नहीं बचा था। वह पागलों की तरह गंगा तट पर घूम रहे थे। तभी सतुआ बाबा का उन्हें दर्शन हुआ। रघुभाई ने अपना सारा दर्द बाबा को सुनाया। सतुआ बाबा ने बातों को सुनते ही गंगा में डूबकी लगा दी। कुछ पलों के लिए बाबा मानो अदृश्य हो चुके थे। अचानक बाबा बाहर आए और हाथों को दिखाते हुए रघुभाई से बोले, जितनी मुद्राए चाहिए ले लो। लेकिन ध्यान रखना मां गंगा को फिर वापस कर देना। रघुभाई ने बीस स्वर्ण मुद्राए ली। बाद में आकर उन्होंने गिन्नियां मां गंगा को वापस कर दी। इसके बाद वह काफी दिनों तक बाबा के साथ ही रहे।
पत्नी ने बाबा को प्रणाम किया और बाबा ने आशीर्वाद दिया सौभाग्यवती भवः। उधर मृत सेठ के शरीर में कंपन होने लगी। बाबा ने पत्नी से बोला बैठ जाओं, उधर मृत सेठ को स्नान करा रहे लोग हैरान हो गए। सेठ का धीरे-धीरे हाथ पांव सांसे सब चलने लगी और वह मृत से जीवित हो उठे। सैकड़ों लोगों ने इस चमत्कार को जब देखा तो वह बाबा को दंडवत करने लगे। सेठ के परिजन आज भी बाबा के आश्रम में सेवा करते हैं। संत सेवा में अग्रणी गुजरात के रघुभाई डाया ठक्कर एक बार तीर्थ को काशी आए थे। रास्ते में एक जगह लुटेरों ने उनको लूट लिया। इस घटना से वह पूरी तरह से विचलित और भयभीत हो गए थे। काशी दान पुन्य को पहुंचे रघुभाई के पास खुद खाने को नहीं बचा था। वह पागलों की तरह गंगा तट पर घूम रहे थे। तभी सतुआ बाबा का उन्हें दर्शन हुआ। रघुभाई ने अपना सारा दर्द बाबा को सुनाया। सतुआ बाबा ने बातों को सुनते ही गंगा में डूबकी लगा दी। कुछ पलों के लिए बाबा मानो अदृश्य हो चुके थे। अचानक बाबा बाहर आए और हाथों को दिखाते हुए रघुभाई से बोले, जितनी मुद्राए चाहिए ले लो। लेकिन ध्यान रखना मां गंगा को फिर वापस कर देना। रघुभाई ने बीस स्वर्ण मुद्राए ली। बाद में आकर उन्होंने गिन्नियां मां गंगा को वापस कर दी। इसके बाद वह काफी दिनों तक बाबा के साथ ही रहे।