मादरडीह में मिल चुकी है शुग एवं कुषाण तथा गुप्तकाल की मूर्तियां

जौनपुर वर्ष 2011 में मादरडीह से अतीत की कुछ रोचक जानकारियां खोजी गई थीं। बरसात के कारण थमा खोज का यहा कारवां एक बार फिर तैयार है मानव सभ्यता के कुछ और रहस्यों से पर्दा उठाने को।
अब तक प्राप्त अवशेषों में शुग एवं कुषाण तथा गुप्तकाल की कुछ मूर्तियां व मनके हैं जो प्राचीन नगरीय सभ्यता की गवाही देते हैं। पकी ईंट से बने बौद्ध विहार एवं स्तूप के खंडावशेष संकेत कर रहे हैं कि बोधगया जाते समय महात्मा बुद्ध भी इस स्थल पर आए होंगे। 6 जून 2011 से उत्खनन रुका पड़ा है। अत: यहां का पुरातत्व सर्वेक्षण अधूरा रह गया था। इस बार उत्खनन का काम लंबे समय तक चलने की संभावना है।
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एक किलोमीटर में फै ला है टीला
बसुही नदी तट पर स्थित मारदडीह एक किलोमीटर में फैला एक आबाद टीला है। इसकी ऊंचाई सौ फिट से अधिक है। दो एकड़ क्षेत्रफल में टीले के सामने एक स्तंभ है जिसकी मान्यता ग्राम देवता के रूप में है। यहां से स्तूप की दीवार के अवशेष प्राप्त हो चुके हैं।
कब, क्या मिला अवशेष
13 जून -लौहे का हथियार एवं नर्तकी की मूर्ति
14 जून -पक्की ईट, मिंट्टी के मनके एवं लौह अयस्क
15 जून -महात्मा बुद्ध की भग्न मृण मूर्ति, मिंट्टी से बना स्टैम,
16 जून -बाणाग्र, हाथी के दांत, चूड़ी
18 जून -प्राचीन परम्परा के टूटे बर्तन, रिंगवेल,
19 जून -यक्ष देवता की भग्न मूर्ति एवं अनेक मृदभाण्ड
28 जून -बौद्ध विहार की पक्की दीवार एवं स्तूप की दीवार
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