जेलर की हत्या में वाट्स अप' का इस्तेमाल
https://www.shirazehind.com/2013/11/blog-post_7126.html
वाराणसी। तकनीक के चक्कर में बेसिक पुलिसिंग से दूर हो चुकी पुलिस को
अपराधी उन्हीं की भाषा में चुनौती देने लगे हैं। जिला जेल के डिप्टी जेलर
अनिल त्यागी की हत्या में सोशल मीडिया के चर्चित एप्लीकेशन 'वाट्स अप' का
इस्तेमाल किया गया है।
वाट्स अप के जरिए डिप्टी जेलर के जिम रवाना होने की सूचना शूटरों तक पहुंचाई गई। गाड़ी के साथ निकलने की सूचना मिलते ही शूटरों ने उनका पीछा शुरू किया और महावीर मंदिर के समीप जिम के बाहर उनके रूकते ही ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर हत्या कर दी और फरार हो गए।
पुलिस अब सर्विलांस पर उन नंबरों के रिकॉर्ड जुटा रही है जिन्होंने घटना के दौरान इंटरनेट का प्रयोग किया था।
सोशल मीडिया के चर्चित एप्लीकेशन 'वाट्स अप' की खामी या खासियत जो भी समझें, यह है कि इसके माध्यम से साझा हुई तस्वीरों, संदेशों को पढ़ा नहीं जा सकता, जब तक कि पहले से उन मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर न डाला गया हो।
डिप्टी जेलर की हत्या का षड़यंत्र करने वालों को अच्छे से मालूम था कि हत्या के बाद पुलिस सबसे पहले जेल से लेकर महावीर मंदिर तक पड़ने वाले सभी मोबाइल टावरों के रिकॉर्ड निकलवाएगी और कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए शूटरों के गिरेबां तक पहुंच जाएगी। शूटरों व मुखबिर को ताकीद किया गया था कि वे मोबाइल पर एक दूसरे से बातचीत के बजाए वाट्स अप के जरिए संदेशों का आदान-प्रदान करेंगे। यही वजह है कि जेलर की हत्या को अस्सी घंटे से अधिक बीत चुके हैं पर पुलिस के हाथ खाली हैं।
वाट्स अप के जरिए डिप्टी जेलर के जिम रवाना होने की सूचना शूटरों तक पहुंचाई गई। गाड़ी के साथ निकलने की सूचना मिलते ही शूटरों ने उनका पीछा शुरू किया और महावीर मंदिर के समीप जिम के बाहर उनके रूकते ही ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर हत्या कर दी और फरार हो गए।
पुलिस अब सर्विलांस पर उन नंबरों के रिकॉर्ड जुटा रही है जिन्होंने घटना के दौरान इंटरनेट का प्रयोग किया था।
सोशल मीडिया के चर्चित एप्लीकेशन 'वाट्स अप' की खामी या खासियत जो भी समझें, यह है कि इसके माध्यम से साझा हुई तस्वीरों, संदेशों को पढ़ा नहीं जा सकता, जब तक कि पहले से उन मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर न डाला गया हो।
डिप्टी जेलर की हत्या का षड़यंत्र करने वालों को अच्छे से मालूम था कि हत्या के बाद पुलिस सबसे पहले जेल से लेकर महावीर मंदिर तक पड़ने वाले सभी मोबाइल टावरों के रिकॉर्ड निकलवाएगी और कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए शूटरों के गिरेबां तक पहुंच जाएगी। शूटरों व मुखबिर को ताकीद किया गया था कि वे मोबाइल पर एक दूसरे से बातचीत के बजाए वाट्स अप के जरिए संदेशों का आदान-प्रदान करेंगे। यही वजह है कि जेलर की हत्या को अस्सी घंटे से अधिक बीत चुके हैं पर पुलिस के हाथ खाली हैं।