न जाने शहर के किस रोड पर जिंदगी की शाम हो जाए'
https://www.shirazehind.com/2013/11/blog-post_480.html
उजाले उनकी यादों के मेरे साथ रहने दो, न जाने किस घड़ी जिंदगी की शाम हो..।
किसी मशहूर शायर की इस पंक्तियों की आखिरी लाइन को थोड़ा बदलकर कहें 'न
जाने शहर के किस रोड पर जिंदगी की शाम हो जाए' तो शायद गलत नहीं होगा
क्योंकि जिले की सड़कों का हाल कुछ ऐसा ही है। इनमें गिरकर लोग रोजाना चुटहिल
हो रहे है
जौनपुर नगर की सड़के हो या नॅशनल हाइवे आजमगढ़ मार्ग को छोड़ दिया जाय तो सभी की हालत बद से बत्तर हो चुकी है। हालत इतने खराब हो गये है सड़क में गड्ढा है या गड्ढे में सड़क है यह तय कर पाने काफी मुश्किल हो गया है। इस ख़राब रोड के कारण आये दिन हादसे के शिकार होकर लोग अपनी जान गवां रहे है। सबसे अधिक हालत तो लखनऊ - वाराणसी राष्ट्रीय राज्य मार्ग की खराब है। इस रास्ते पर प्रतिदिन दर्जनो माननीय लाल बत्ती पर सवार होकर अपनी यात्रा पूरी करते है।
गढ्डों से नौजवान हो रहा बीमार
अधिकतर नवयुवकों के गले में पट्टा, रीढ़-पीठ व कमर में बेल्ट लग चुका है। अर्थात बीमार चल रहे हैं नौजवान। इन बीमारियों का कारण देखा जाए तो बाइक पर अधिक भाग-दौड़ नहीं बल्कि सड़कों पर हुए गढ्डों से लगने वाले झटके हैं।
एक नजर आप अपने जनपद के सड़क मैप डालें तो कोई ऐसा मार्ग नहीं मिलेगा जिस पर अत्यधिक गढ्डे न हों। इस भागमभाग वाले समय में हर व्यक्ति की जरूरत बाइक या वाहन है। भागना भी जरूरत बन गई है। भागने में कोई कमी नहीं, पर रुकावट तब आती है जब गढ्डों से स्पाइनल व सरवाइकल या कमर प्रभावित होने लगता है। डाक्टर के पास जाने पर बाइक छोड़ने की सख्त हिदायत मिलती है व घर पर आराम करने की सलाह दी जाती है।
अब सवाल यह उठता है कि कितने दिनों तक बाइक नहीं चलाएंगे। ऐसे में तो सब ठीक होने के बावजूद इन गढ्डों ने स्वस्थ लोगों को भी बीमार कर अपंग बना दिया है। क्या इसी तरह लोगों को बीमार रहना पड़ेगा। क्या अस्वस्थ बीमार लोगों से भरे पड़े होने से राष्ट्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। जिस देश का युवा ही बीमार हो उस देश की स्थिति कितनी चिंतनीय है। अगर समय रहते शासन-प्रशासन नहीं जागा तो सड़क रूपी गढ्डे के समान देश व विकास भी गढ्डे में चला जाएगा। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता।
जौनपुर नगर की सड़के हो या नॅशनल हाइवे आजमगढ़ मार्ग को छोड़ दिया जाय तो सभी की हालत बद से बत्तर हो चुकी है। हालत इतने खराब हो गये है सड़क में गड्ढा है या गड्ढे में सड़क है यह तय कर पाने काफी मुश्किल हो गया है। इस ख़राब रोड के कारण आये दिन हादसे के शिकार होकर लोग अपनी जान गवां रहे है। सबसे अधिक हालत तो लखनऊ - वाराणसी राष्ट्रीय राज्य मार्ग की खराब है। इस रास्ते पर प्रतिदिन दर्जनो माननीय लाल बत्ती पर सवार होकर अपनी यात्रा पूरी करते है।
गढ्डों से नौजवान हो रहा बीमार
अधिकतर नवयुवकों के गले में पट्टा, रीढ़-पीठ व कमर में बेल्ट लग चुका है। अर्थात बीमार चल रहे हैं नौजवान। इन बीमारियों का कारण देखा जाए तो बाइक पर अधिक भाग-दौड़ नहीं बल्कि सड़कों पर हुए गढ्डों से लगने वाले झटके हैं।
एक नजर आप अपने जनपद के सड़क मैप डालें तो कोई ऐसा मार्ग नहीं मिलेगा जिस पर अत्यधिक गढ्डे न हों। इस भागमभाग वाले समय में हर व्यक्ति की जरूरत बाइक या वाहन है। भागना भी जरूरत बन गई है। भागने में कोई कमी नहीं, पर रुकावट तब आती है जब गढ्डों से स्पाइनल व सरवाइकल या कमर प्रभावित होने लगता है। डाक्टर के पास जाने पर बाइक छोड़ने की सख्त हिदायत मिलती है व घर पर आराम करने की सलाह दी जाती है।
अब सवाल यह उठता है कि कितने दिनों तक बाइक नहीं चलाएंगे। ऐसे में तो सब ठीक होने के बावजूद इन गढ्डों ने स्वस्थ लोगों को भी बीमार कर अपंग बना दिया है। क्या इसी तरह लोगों को बीमार रहना पड़ेगा। क्या अस्वस्थ बीमार लोगों से भरे पड़े होने से राष्ट्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। जिस देश का युवा ही बीमार हो उस देश की स्थिति कितनी चिंतनीय है। अगर समय रहते शासन-प्रशासन नहीं जागा तो सड़क रूपी गढ्डे के समान देश व विकास भी गढ्डे में चला जाएगा। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता।