'प्यासा है शेर घाट का रास्ता न रोकियो, अब्बास है जलाल में हरगिज न टोकियो'

जौनपुर : 'जब कट गए दरिया पे अलमदार के बाजू, आंखों में थे आंसू, मारा गया प्यासा' और 'प्यासा है शेर घाट का रास्ता न रोकियो, अब्बास है जलाल में हरगिज न टोकियो' का नौहा मातमी अंजुमनों ने बुधवार को आठवीं मोहर्रम पर पढ़ी तो जंजीरों का मातम आक्रोश भरे आंसुओं से तेज हो गया। यहां बज रहे तबल और कर्बला का खूनी मंजर देख पूर्वाचल के विभिन्न जनपदों से आए लोग दहाड़ मारकर चीखने चिल्लाने लगे।
यह आठवीं मोहर्रम हजरत इमाम हुसैन के छोटे भाई हजरत अब्बास अलमदार की शहादत से मंसूब है। मजलिश में शिया धर्म गुरु ने बताया कि खेमे में बच्चे प्यास से तड़प रहे थे। गाजी अब्बास से यह नहीं देखा गया। उन्होंने हजरत इमाम हुसैन से जंग की इजाजत मांगी। उन्होंने इजाजत नहीं दिया तो कहा कि भइया मुझे पानी लेने जाने दीजिए। इस पर चार माह की भतीजी हजरत शकीना से मस्कीजा लिया और अलम में बांधकर नहरे फरात की ओर बढ़ गए। मस्कीजा में पानी भरा तो जालिमों ने हमला बोल दिया। एक तीर मस्कीजा में लगा तो पानी बह गया। थोड़ा बचा था उसे लेकर आगे बढ़े तो तलवार से एक और फिर दूसरा हाथ काट दिया। अलम को दांत से पकड़कर वे चले कि शायद एक कतरा पानी ही खेमे में पहुंच जाए लेकिन तब तक यजीदियों ने उनको मौत की नींद सुला दी। इससे प्यास में तड़प रहे बच्चों की पानी की आस टूट गई और हुसैनी खेमे में लोग दहाड़ें मारकर रोने लगे। यह कर्बला का बयां सुन मजलिश में हाय हुसैन-हाय हुसैन होने लगा। यह मातमी सदाएं भी चहुंओर फैल गई।

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