छाती व फेफड़े के मरीजों को भटकने की जरूरत नहीं : डा. अतुल श्रीवास्तव
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टीबी हास्पिटल में अस्थमा, सीओपीडी, आईएलडी, एमडीआर का भी होता है उपचार
जौनपुर। छाती एवं फेफड़ा रोग से ग्रसित मरीजों को अब अन्यत्र कहीं जाकर भटकने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उनके समस्याओं का निदान अब यहीं पर जिला क्षय रोग चिकित्सालय (टीबी हास्पिटल) में होगा। उक्त बातें के.जी.एम.सी. लखनऊ में 30 माह तक सरकारी प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद जनपद में आये छाती एवं फेफड़ा रोग विशेषज्ञ (चेस्ट स्पेशलिस्ट) डा. अतुल कुमार श्रीवास्तव ने कही।
नगर के ओलन्दगंज-टीडी कालेज मार्ग पर स्थित होटल रघुवंशी में पत्र-प्रतिनिधियों से वार्ता करते हुये उन्होंने कहा कि टीबी हास्पिटल में केवल टीबी का ही उपचार नहीं होता है, बल्कि यहां अस्थमा, सीओपीडी, आईएलडी, एमडीआर टीबी जैसी खतरनाक बीमारियों को भी उपचार होता है। इसके लिये मुख्य चिकित्सा अधिकारी के पहल एवं जिला क्षय अधिकारी के दिशा निर्देशन में डा. अतुल कुमार श्रीवास्तव को बतौर चेस्ट स्पेशलिस्ट (छाती एवं फेफड़ा रोग विशेषज्ञ) के रूप में तैनात किया गया है।
उन्होंने कहा कि हमारी इस विधा में तमाम तरह की बीमारियां देखने को मिलती हैं जिसे समय पर डायग्नोस कर मरीज को बीमारी से बचाया जा सकता है। सरकार द्वारा चलाये जा रहे कार्यक्रम में छोटी टीबी एवं बड़ी टीबी (जिसको एमडीआरटीबी कहते हैं) का पूर्णरूपेण उपचार अब जिला क्षय रोग चिकित्सालय में किया जा रहा है जिससे मरीजों को काफी लाभ मिल रहा है। अस्थमा, सीओपीडी, आईएलडी जैसी फेफड़ों की बीमारियांे से चेस्ट फिजीशियन से समय रहते परामर्श लेकर निदान किया जा सकता है।
डा. श्रीवास्तव ने कहा कि एलर्जी की समस्या आम जनमानस में अक्सर देखने को मिलती है जिसका भी निदान चेस्ट फिजीशियन द्वारा बखूबी किया जा सकता है। एचआईवी टीबी को-इन्फेक्सन होने पर जिले स्तर पर आईसीटीसी की व्यवस्था है जहां से टीबी के साथ-साथ एआरटी दवाएं भी उपलब्ध हो जाती हैं। जब चेस्ट फिजीशियन साथ में डायबेटोलागिस्ट हो तो सोने पर सुहागा माना जाय। चूंकि अक्सर डायबिटीज के मरीज प्रतिरक्षण क्षमता कम होने के कारण पल्मोनरी टीबी के शिकार हो जाते हैं।
चेस्ट स्पेशलिस्ट ने कहा कि ग्लोबल सर्वे में यह पाया गया है कि 5-30 प्रतिशत डायबिटीज के मरीज टी.बी. के शिकार हो जाते हैं जिसका भी निदान बखूबी किया जा सकता है। जाड़े के समय में अक्सर सीओपीडी के मरीजों को कई बार एक्यूट अटैक से गुजरना पड़ता है जिसके लिये बहुत सारी कारगर दवाएं एवं इन्हेलर अलग डिवाइसों के साथ मार्केट में उपलब्ध हैं जिसको उचित तरीके से लेने का सही सलाह चेस्ट फिजीशियन ही दे सकता है।
अन्त में उन्होंने कहा कि मरीज उपरोक्त सम्बन्धित बीमारी से निजात चेस्ट फिजीशियन से परामर्श लेने के उपरान्त ही पा सकता है। फरवरी व मार्च माह के आस-पास अक्सर अस्थमा के मरीज अटैक के शिकार होते हैं जिनको चेस्ट फिजीशियन के उचित मार्गदर्शन द्वारा निजात दिलाया जा सकता है। आजकल आटोमोबाइल के धुयें एवं बायोगैस ईंधन से फेफड़ा जनित कई रोग- सीओपीडी आईएलडी शामिल हैं। उन्हें दवा एवं हेल्थ एजूकेशन के माध्यम से नियंत्रित किया जा सकता है।