मुर्गी पालन में भी है सुनहरा भविष्य
https://www.shirazehind.com/2013/11/blog-post_1937.html
जौनपुर : बेरोजगार जहां रोजगार की तलाश के लिए महानगरों की ओर रुख कर
रहे है। वहीं सिविल सेवा की तैयारी में असफल होने पर राजीव कुमार सिंह गांव
में ही अंडे का व्यवसाय शुरू कर ऐसे लोगों के लिए प्रेरणा बन गया है।
क्षेत्र के मयंदीपुर गांव निवासी राजीव कुमार सिंह एमए की पढ़ाई कर सिविल सेवा की तैयार करने लगा। मगर काफी मेहनत के बाद भी उसे सफलता नहीं मिली। परिवार के लोग उसे बाहर जाकर कमाने के लिए प्रेरित करने लगे। मगर राजीव महानगर नहीं गया। बल्कि अंडा का व्यवसाय शुरू करने का निर्णय ले लिया। वह कृषि विज्ञान केंद्र बक्शा के विशेषज्ञों से मिला। जहां से उसे 2010 में प्रशिक्षण लेने के लिए पक्षी अनुसंधान केंद्र बरेली भेज दिया गया। प्रशिक्षण लेने के बाद राजीव मई 2013 में वापस लौटा और अपना व्यवसाय शुरू कर दिया। जो इस समय काफी सफल हो चुका है। दूर-दूर के लोग उससे मुर्गी पालन के तौर तरीके जानने के लिए आने भी लगे है।
दो हजार चूजों से किया शुरुआत
बरेली से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद लौटे राजीव ने दो हजार चूजों से अपना व्यवसाय शुरू किया। उसने सभी चूजे मई में वैंकीज इंडिया प्राइवेट से भूमध्य सागरीय प्रदेश की व्हाइट लेन हार्न प्रजाति की दो हजार सफेद रंग के चूजे खरीदकर अपने व्यवसाय की शुरुआत की। जो इस समय एक बड़े पोल्ट्री फार्म का रूप ले चुका है।
ऐसे करनी पड़ती है मेहनत
अंडे तैयार करने में कुछ मेहनत जरूर लगती है मगर फायदे भी खूब होते है। राजीव कुमार सिंह बताते है कि डीप लीटर सिस्टम से मुर्गी पालन किया जाता है। फर्श पर भूसी फैलाकर चूजों को दाना पानी दिया जाता है। दस दिन पर फर्श पर दवा का छिड़काव किया जाता है। समय-समय पर भूसी की निराई गुड़ाई भी की जाती है। दस और तीन माह में बच्चों के चोच की कटिंग की जाती है ताकि कुक्कुट आपस में लड़कर घायल न हो। साथ ही समय-समय पर टीके व बिटामिन की खुराक भी दिए जाते है।
क्षेत्र के मयंदीपुर गांव निवासी राजीव कुमार सिंह एमए की पढ़ाई कर सिविल सेवा की तैयार करने लगा। मगर काफी मेहनत के बाद भी उसे सफलता नहीं मिली। परिवार के लोग उसे बाहर जाकर कमाने के लिए प्रेरित करने लगे। मगर राजीव महानगर नहीं गया। बल्कि अंडा का व्यवसाय शुरू करने का निर्णय ले लिया। वह कृषि विज्ञान केंद्र बक्शा के विशेषज्ञों से मिला। जहां से उसे 2010 में प्रशिक्षण लेने के लिए पक्षी अनुसंधान केंद्र बरेली भेज दिया गया। प्रशिक्षण लेने के बाद राजीव मई 2013 में वापस लौटा और अपना व्यवसाय शुरू कर दिया। जो इस समय काफी सफल हो चुका है। दूर-दूर के लोग उससे मुर्गी पालन के तौर तरीके जानने के लिए आने भी लगे है।
दो हजार चूजों से किया शुरुआत
बरेली से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद लौटे राजीव ने दो हजार चूजों से अपना व्यवसाय शुरू किया। उसने सभी चूजे मई में वैंकीज इंडिया प्राइवेट से भूमध्य सागरीय प्रदेश की व्हाइट लेन हार्न प्रजाति की दो हजार सफेद रंग के चूजे खरीदकर अपने व्यवसाय की शुरुआत की। जो इस समय एक बड़े पोल्ट्री फार्म का रूप ले चुका है।
ऐसे करनी पड़ती है मेहनत
अंडे तैयार करने में कुछ मेहनत जरूर लगती है मगर फायदे भी खूब होते है। राजीव कुमार सिंह बताते है कि डीप लीटर सिस्टम से मुर्गी पालन किया जाता है। फर्श पर भूसी फैलाकर चूजों को दाना पानी दिया जाता है। दस दिन पर फर्श पर दवा का छिड़काव किया जाता है। समय-समय पर भूसी की निराई गुड़ाई भी की जाती है। दस और तीन माह में बच्चों के चोच की कटिंग की जाती है ताकि कुक्कुट आपस में लड़कर घायल न हो। साथ ही समय-समय पर टीके व बिटामिन की खुराक भी दिए जाते है।