'हम तो बिखरे हुए मोती हैं टूटे हुए तारे'

जौनपुर 'जिंदगी बहार थी अंगार बन गई,
प्यार की फुहार थी कटार बन गई,
सपने टूटकर बिखर गए सभी, रस भरी अनार थी मदार बन गई'।
 ये चार पंक्तियां शाहपुर गांव के विकलांग डीएन पर एकदम सटीक बैठती है जो कभी फिल्मी चकाचौंध में सदाबहार जितेंद्र, मुमताज, गुरुदत्त साहब का चहेता हुआ करता था। उन्हीं की कृपा से खुद का बैनर डीवी फिल्मस के नाम से था लेकिन भाग्य ने ऐसी पलटी मारी कि इस समय गांव में चाय-पान बेचकर भरण-पोषण कर रहा है। लेकिन फिल्म का जुनून अभी सवार रहता है। डायलाग और पटकथा भी लिखकर खाली वक्त में समय बिताता है। इस तरह डीएन की कहानी किसी दर्द भरी फिल्मी पटकथा से कम नहीं।
बतौर डीएन (दूधनाथ) 1952 में शाहपुर गांव में बलदेव यादव के बड़े पुत्र के रूप में उसका जन्म हुआ। 7 वर्ष की अल्पायु में पोलियो का शिकार हो गया। परिवार की तंगी के कारण 14 वर्ष की अवस्था में मुंबई में जाकर एक मारवाड़ी होटल में दिन-रात काम कर पेट पालता। एक दिन महालक्ष्मी पुल के पास उसे रोता देख किलकर बाई नाम की महिला ने गाड़ी रोककर उसे ले जाकर भोजन कराया और 'स्नेह सदन अनाथालय' में पहुंचा दिया।
एक दिन फिल्म के सिलसिले में निर्माता निर्देशक गुरुदत्त वहां आए। उन्होंने उनकी प्रतिभा देखकर अपनी मराठी फिल्म में अनाथ बच्चे का रोल दिया। अच्छा रोल देख इसे दूसरी फिल्म 'मुझे सीने से लगा लो' में काम मिला। इसके बाद वहां वह कुछ शिक्षा लेने के बाद कहानी लिखने लगा। उसकी कहानी पढ़कर अभिनेता जितेंद्र व अभिनेत्री मुमताज ने बहुत सराहा और डीएन पर 'कठपुतली' का गीत 'हम तो बिखरे हुए मोती हैं टूटे हुए तारे' फिल्माया गया। इसकी भूमिका देख इसे मुमताज बहुत सहयोग देने लगी और आगा, फरीदा जलाल, हेलन का भी प्यार मिला। डीएन मुमताज के सहयोग से बैनर का रजिस्ट्रेशन कराकर भोजपुरी फिल्म बनाने की शुरुआत कर रहा था कि मुमताज विदेश चली गई और सहयोगियों से धोखा खाकर डीएन अर्श से फर्श पर आ गिरा। गांव की माटी उसे घर खींच लाई।
इस समय भूमिहीन डीएन अपने छोटे से आवास में चाय-पान बेचकर जीविकोपार्जन कर रहा है। लेकिन कुरेदने पर आज भी फिल्म का जुनून आता है। बहरहाल अब किस्मत का खेल निराला मानकर वह अपना दिन चाय-पान बेच भाव-भजन में बिता ले रहा है।
पुत्र को भी देना पड़ा कंधा
डीएन के पास एक मात्र पुत्र था और चार पुत्रियां। पुत्रियों की शादी कर दिया लेकिन एक मात्र पुत्र वह भी 15 वर्ष की अवस्था में नदी में डूबकर मर गया। एकलौता चिराग बुझने के बाद वह पत्नी के साथ किसी तरह दिन काट रहा है। इस तरह पिता के कंधों पर पुत्र के जनाजे के बोझ ने उसे कमजोर कर दिया।

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