बेजुबां पशुओं के देवता है किशन हरलालका
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ठंड से कांप रहे लोगो को गोपनीय तरीके से कम्बल देने का काम करना
इनकी आदत में शुमार है
अपने लिए तो सभी जीते है दूसरो के लिए जो जीता है वही एक सच्चा
इन्सान होता है लेकिन जो बे जुबा जानवर के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगता है
वह निः संदेह इन्सान से ऊपर होता ही साथ ही उन पशुओ के लिए भगवान भी होता
है। जी हाँ आज हम जौनपुर के उस सामाजिक संत से रु ब रु कराने जा रहे है
जिसे जानते तो बहुत लोग है लेकिन उनकी सच्ची समाज सेवा के बारे में काफी कम
ही लोग जानते है। इसका मुख्य कारण है जो भी करते है वह गुप्त रूप से करते
है।
ये कलयुग के महर्षि है किशन लाल हरलालका। किशन हरलालका 30
नवम्बर 1960 को जौनपुर नगर अल्फ़सटीनगंज मोहल्ले के निवासी व जिले के
प्रतिष्ठित व्यापारी स्व० घनश्याम दास हरलालका के बड़े पुत्र के रूप में
जन्म लिया। किशन अभी पढाई कर ही रहे थे इसी बीच उनके पिता की असमायिक निधन
हो गया । पिता की मौत के बाद जहाँ पुश्तैनी व्यापार चौपट हो गया वही इनके
कंधो पर पूरे परिवार का बोझ पड़ गया । इसके बाद भी किशन ने हार नही मानी
अपनी मेहनत के बल पर पूरे परिवार का पालन पोषण किया ही वही समाज सेवा भी
करते रहे। छुट्टा और आवारा पशुओं को पानी की किल्लत को देखते हुए अपने
दुकान के सामने एक नाद रखकर उसमे पानी भरने लगे इस पानी से छुट्टा जानवर
अपनी प्यास बुझाने लगे। उसके बाद किशन बाबू ने राहगीरों को पानी पिलाने के
लिए अपनी दुकान में घड़े में पानी और गुड की व्यवस्था कराया। पशुओं के प्रति
इनकी सेवा को देखते हुए गौशाला कमेटी ने गौशाले की पूरी जिम्मेदारी किशन
के ऊपर सौप दिया। किशन संस्था के अध्यक्ष यदवेद्र चतुर्वेदी , गोपाल
हरलालका और दिनेश कपूर के साथ मिलकर 250 से अधिक बेजुबां जानवरों का पालन
पोषण कर रहे है। किशन लाल हरलालका |