जौनपुर के अमिन शाहनी है सुशील वर्मा
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लगातार 20 घण्टे तक संचालन करते हैं सुशील वर्मा
जौनपुर। जौनपुर का सबसे बड़ा व पवित्र पर्व शारदीय नवरात्रि में लगने वाले दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन हो या ऐतिहासिक पण्डित जी का भरत मिलाप या सरकारी व गैरसरकारी कार्यक्रम हो, इन सभी अवसरों पर केवल एक ही शख्स की आवाज गूंजती है। वह बुलंद व प्यारी आवाज है सुशील वर्मा एडवोकेट की। इनकी आवाज में वह जादू है जिसके माध्यम से मेले में उमड़ी हजारों की भीड़ को आसानी से मेले का भ्रमण करा देती है, साथ ही बीच-बीच में मनोरंजन भी कराती रहती है। इतिहास गवाह है कि आज तक किसी भी मेले में भगदड़ तो दूर की बात, धक्का-मुक्की तक नहीं हुआ है। सुशील वर्मा की सबसे खास बात यह है कि वह लगातार 20 घण्टे तक संचालन करते हैं। इस दौरान न इन्हें थकावट महसूस होती है और न ही गले में कोई परेशानी।
नगर के ओलन्दगंज निवासी श्री वर्मा बचपन में रामलीला के कलाकार रहे हैं जो रेडियो पर आने वाले कार्यक्रम ‘विनाका गीतमाला’ एवं उसके उद्घोषक अमिन शाहनी के फैन रहे हैं। अमिन से ही आकर्षित होकर श्री वर्मा पहली बार ओलन्दगंज स्थित फल वाली गली में लगने वाले मां दुर्गा के पण्डाल में वर्ष 1976 में माइक पकड़े। फिर क्या था, माता रानी के आशीर्वाद से आज वह शहर ही नहीं, पूरे जिले के अलावा दूर-दराज स्थानों पर होने वाले छोटे-बड़े सभी धार्मिक, सामाजिक सहित अन्य कार्यक्रमों में इनकी ही आवाज गूंजती है। इस बाबत पूछे जाने पर श्री वर्मा ने बताया कि वर्ष 1989 में उन्हें रामनवमी जैसे बड़े कार्यक्रम का संचालन करने मौका दिया। माइक पकड़ते ही हाथ कांपने लगा लेकिन बजरंग बली का स्मरण करते हुये बोलना शुरू किया तो चंद शब्दों को बोलने के बाद मेरे अन्दर एक अजीब सी ऊर्जा जागृत हो गयी। इसके बाद दुर्गा पूजा में माता रानी की प्रतिमाओं के विसर्जन (मेले) के संचालन की जिम्मेदारी मेरे कंधे पर सौंप दी गयी जिसे आज भी उठा रहा हूं। इसके साथ ही ऐतिहासिक पण्डित जी भारत मिलाप का संचालन करने का अवसर मिला। इन दोनों बड़े और महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के साथ ही सरकारी एवं स्वयंसेवी संस्थाओं के तमाम आयोजनों की जिम्मेदारी मेरे ही कंधों पर है। सुशील वर्मा एक कुशल संचालक के साथ सच्चे समाजसेवी भी हैं। ये अपने बाल-बच्चों की दो वख्त की रोटी का जुगाड़ दीवानी में वकालत पेशे से करते हैं। उसी में से कुछ पैसे बचाकर गरीबों व मजलूमों की मदद भी करते रहते हैं। उनका कहना है कि मुझे खेद है निःस्वार्थ भाव से सेवा करने पर आज तक उन्हें वह सम्मान नहीं मिल पाया है जिसके वह वास्तव में पात्र हैं।
जौनपुर। जौनपुर का सबसे बड़ा व पवित्र पर्व शारदीय नवरात्रि में लगने वाले दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन हो या ऐतिहासिक पण्डित जी का भरत मिलाप या सरकारी व गैरसरकारी कार्यक्रम हो, इन सभी अवसरों पर केवल एक ही शख्स की आवाज गूंजती है। वह बुलंद व प्यारी आवाज है सुशील वर्मा एडवोकेट की। इनकी आवाज में वह जादू है जिसके माध्यम से मेले में उमड़ी हजारों की भीड़ को आसानी से मेले का भ्रमण करा देती है, साथ ही बीच-बीच में मनोरंजन भी कराती रहती है। इतिहास गवाह है कि आज तक किसी भी मेले में भगदड़ तो दूर की बात, धक्का-मुक्की तक नहीं हुआ है। सुशील वर्मा की सबसे खास बात यह है कि वह लगातार 20 घण्टे तक संचालन करते हैं। इस दौरान न इन्हें थकावट महसूस होती है और न ही गले में कोई परेशानी।
नगर के ओलन्दगंज निवासी श्री वर्मा बचपन में रामलीला के कलाकार रहे हैं जो रेडियो पर आने वाले कार्यक्रम ‘विनाका गीतमाला’ एवं उसके उद्घोषक अमिन शाहनी के फैन रहे हैं। अमिन से ही आकर्षित होकर श्री वर्मा पहली बार ओलन्दगंज स्थित फल वाली गली में लगने वाले मां दुर्गा के पण्डाल में वर्ष 1976 में माइक पकड़े। फिर क्या था, माता रानी के आशीर्वाद से आज वह शहर ही नहीं, पूरे जिले के अलावा दूर-दराज स्थानों पर होने वाले छोटे-बड़े सभी धार्मिक, सामाजिक सहित अन्य कार्यक्रमों में इनकी ही आवाज गूंजती है। इस बाबत पूछे जाने पर श्री वर्मा ने बताया कि वर्ष 1989 में उन्हें रामनवमी जैसे बड़े कार्यक्रम का संचालन करने मौका दिया। माइक पकड़ते ही हाथ कांपने लगा लेकिन बजरंग बली का स्मरण करते हुये बोलना शुरू किया तो चंद शब्दों को बोलने के बाद मेरे अन्दर एक अजीब सी ऊर्जा जागृत हो गयी। इसके बाद दुर्गा पूजा में माता रानी की प्रतिमाओं के विसर्जन (मेले) के संचालन की जिम्मेदारी मेरे कंधे पर सौंप दी गयी जिसे आज भी उठा रहा हूं। इसके साथ ही ऐतिहासिक पण्डित जी भारत मिलाप का संचालन करने का अवसर मिला। इन दोनों बड़े और महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के साथ ही सरकारी एवं स्वयंसेवी संस्थाओं के तमाम आयोजनों की जिम्मेदारी मेरे ही कंधों पर है। सुशील वर्मा एक कुशल संचालक के साथ सच्चे समाजसेवी भी हैं। ये अपने बाल-बच्चों की दो वख्त की रोटी का जुगाड़ दीवानी में वकालत पेशे से करते हैं। उसी में से कुछ पैसे बचाकर गरीबों व मजलूमों की मदद भी करते रहते हैं। उनका कहना है कि मुझे खेद है निःस्वार्थ भाव से सेवा करने पर आज तक उन्हें वह सम्मान नहीं मिल पाया है जिसके वह वास्तव में पात्र हैं।