ढीला करदे हा निर्दय , जीवन के इन जड़बन्धो को
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आज सीच दे ऐ निर्दय , तू उर के सूखे रन्ध्रो को ,
मधुर भावनाओ का भूखा ,
चिर उपेक्षा से जो सूखा ,
भर दे आज ह्रदय - पुट रुखा :
ढीला करदे हा निर्दय , जीवन के इन जड़बन्धो को।
मृदु स्मृतियों से भर सपनो को ,
प्रणायासव देकर अपनों को ,
चंद्रासव दे चिर -तपनो को।
कर निर्दय अघात तोड़ता आह , जर्जरित स्कन्धो को।
अंतर का कण कण तम छाया ,
नयनो में आंशु लहराया
उर -धन सूपेन में पाया
दे दे जीवन - ज्योति चिरन्तन , मेरे तम के कन्धो को।
ह्रदय ह्रदय की करुणा लाकर
मेरे उर -मन में फैलाकर ,
फिर उस पर द्दिग -जल बरसाकर ,
मूक व्यथाओ में जग , कर प्रियतर संस्कृति की गन्धो को
परम पूज्य गुरुवर स्व 0 श्रीपाल जी क्षेम की पुस्तक क्षेम रचनावली की भाग 6 की यह रचना है