कमबख्त ! वक़्त-बेवक्त निकल आती हैं ।


मेरे दिल की सिसकियों पर ध्यान ना देना ,
 कमबख्त ! वक़्त-बेवक्त निकल आती हैं । 
तुम खुश रहना अपनी चाहतों के संग संग ,
 मेरी आहों का क्या ,याद आती ,मचल जाती हैं । 
डॉ अ कीर्तिवर्धन

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