शार्की शासन में राजधानी था जौनपुर
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विश्व पयर्टन दिवस पर विशेष
आदि गंगा गोमती के पावन तट पर बसा जौनपुर भारत के इतिहास में अपना विषेष स्थान रखता है। अति प्रचीन काल में इसका आध्यात्मिक व्यक्तित्व और मध्यकाल में सर्वागिक उन्नशिल स्वरूप इतिहास के पन्नो पर दिखाई पड़ता है। शर्कीकाल में यह समृध्दशाली राजवंष के हाथो सजाया गया। उस राजवंष ने जौनपुर को अपनी राजधानी बनाकर इसकी सीमा दूर दूर तक फैलाया। यहां दर्जनो मस्जिदो के निर्माण के साथ ही खुब सूरत शाही पुल और शाही किले का निमार्ण और पूरी राजधानी सुगंध से महकती रहती थी। राजनीतिक, प्रशासनिक, सांस्कृतिक,कलात्मक और शैक्षिक दृष्टियो से जौनपुर राज्य की शान बेमिसाल थी। ऋषि-मुनियो ने तपस्या द्वारा इस भूमि को तपस्थली बनाया, बुध्दिष्टो ने इसे बौध धर्म का केन्द्र बनाया। हिन्दू-मुस्लिम गंगा-जमुनी संस्कृति गतिषील हुई। यह षिक्षा का बहुत बड़ा केद्र रहा,यहां इराक, अरब, मिश्र, अफगानिस्तान, हेरात, बदख्शां आदि देषो से छात्र षिक्षा प्राप्त करने यहां आते थे। इसे भारतवर्ष का मध्युगीन पेरिस तक कहा गया है और शिराज-ए-हिन्द होने का गौरव भी प्राप्त हैं।
आदि गंगा गोमती के पावन तट पर बसा जौनपुर भारत के इतिहास में अपना विषेष स्थान रखता है। अति प्रचीन काल में इसका आध्यात्मिक व्यक्तित्व और मध्यकाल में सर्वागिक उन्नशिल स्वरूप इतिहास के पन्नो पर दिखाई पड़ता है। शर्कीकाल में यह समृध्दशाली राजवंष के हाथो सजाया गया। उस राजवंष ने जौनपुर को अपनी राजधानी बनाकर इसकी सीमा दूर दूर तक फैलाया। यहां दर्जनो मस्जिदो के निर्माण के साथ ही खुब सूरत शाही पुल और शाही किले का निमार्ण और पूरी राजधानी सुगंध से महकती रहती थी। राजनीतिक, प्रशासनिक, सांस्कृतिक,कलात्मक और शैक्षिक दृष्टियो से जौनपुर राज्य की शान बेमिसाल थी। ऋषि-मुनियो ने तपस्या द्वारा इस भूमि को तपस्थली बनाया, बुध्दिष्टो ने इसे बौध धर्म का केन्द्र बनाया। हिन्दू-मुस्लिम गंगा-जमुनी संस्कृति गतिषील हुई। यह षिक्षा का बहुत बड़ा केद्र रहा,यहां इराक, अरब, मिश्र, अफगानिस्तान, हेरात, बदख्शां आदि देषो से छात्र षिक्षा प्राप्त करने यहां आते थे। इसे भारतवर्ष का मध्युगीन पेरिस तक कहा गया है और शिराज-ए-हिन्द होने का गौरव भी प्राप्त हैं।