दिन को रात जताते हैं हम , आतंकवाद को आज़ादी की लड़ाई बताते हैं हम

डॉ अ कीर्तिवर्धन
तिल का ताड़ बनाते हैं हम , बस अपनी बात सुनते हैं हम,
हमको क्या लेना आपके जख्मों से , बस अपना दर्द सुनाते हैं हम।

हमदर्दी पाते हैं महफ़िल मे जाकर, सौगातें लाते अपना दर्द दिखाकर हम,
जानो यह नंगी सच्चाई  , चापलूसी से गैरों मे भी शामिल हो जाते हैं हम.।

दिन को रात जताते हैं हम , आतंकवाद को आज़ादी की लड़ाई बताते हैं हम ,
यकीं करता है दुनिया का बादशाह , घर मे आशियाँ उसका बनवाते हैं हम।

मुल्क ही नहीं कौमों को भी लड़वाते हैं , आग लगी कहीं हाथ सेकने जाते हैं हम ,
आप यकीं करें या न करें  , आतंकवाद से लड़ने के सिरमौर कहाए जाते हैं हम।

अपना बस एक ही सिद्धांत बनाते हैं , सत्ता बस बनी रहे जोड़ तोड़ कराते हैं हम
नवाज़ ,मुसर्रफ ,क्या फर्क पड़ता है , देश के मुखिया बने रहें जतन लड़ाते हैं हम।

अपने घर मे बेगाने हो जाएंगे , दिया आज आशिआना कल मालिक बनायेंगे हम ,
हमें कौन हज़ार साल जिन्दा रहना है , इतिहास मे अपना नाम लिखा जाएंगे हम।

गुमनामी मे नहीं मरना चाहते हैं हम , दुनिया सदा याद करे कुछ ऐसा चाहते हैं हम ,
सच्ची राहों से शोहरत मिला नहीं करती , कड़वी सच्चाई कैसे तुम्हे बताये हम?

आतंकवाद के सभी गुटों को पालें हैं , चीन और अमेरिका को एक साथ साधे हैं हम ,
हिंद को मानवाधिकारों का दुश्मन , कभी कश्मीर को विवादित क्षेत्र बताते हैं हम।

इस्लाम का साम्राज्य दुनिया मे चाहते हैं , उसके भी मुखिया बनना चाहते हैं हम ,
पैगम्बर के बाद किसी को कोई माने , ऐसी छवि जग मे अपनी चाहते हैं हम.

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