सूर्यनाथ के टीम से कापती थी अग्रेजी हुकूमत

 जौनपुर जिले के स्वतंत्रता आन्दोलन का इतिहास स्व0 पंडित सूर्यनाथ उपाध्याय की चर्चा किये वेगैर अधूरा है। अंतिम साँस तक समाज के विकास की सोच रखने वाले पंडित जी जनपद में काग्रेस के केद्र बिंदु रहे।  वह अपने जुझारू तेवर , ओजपूर्ण भाषण एंव तेज - तर्रार नेतृत्व के लिए चर्चित रहे। उपाध्याय जी पुरे जीवन भर समाज के दबे कुचले , गरीबो की लड़ाई लड़ते रहे।  वे इसी लिए गरीबो के मसीहा कहे जाते थे।
श्री उपाध्याय का जन्म 16 जनवरी 1918 दिन बुधवार को सिकरारा थाना क्षेत्र के देह्चुरी गाँव में हुआ था। श्री उपाध्यायमात्र 20 वर्ष की आयु में स्वतंत्रता के आन्दोलन में कूद गये थे। उन्होंने ने पहले भगत सिंह को अपने खून से पत्र लिखा कर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के सदस्य बने। 1938 में ट्रेनिगं लेकर व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लिया और 18 मार्च 1941 को अग्रेजी हुकूमत ने गिरफ्तार कर लिए।

 9 माह की कठोर कारावास भी इनके हौसला कम नही हुआ।  इस जेल यात्रा में जौनपुर और चुनार जेल में रहते हुए जबर्दस्त क्रांतिकारी संगठन बनाया यही सेना सन 1942 के आन्दोलन में तख्त पलटने में मुख्य भूमिका निभाई थी।  बरईपार - सिरसी के शिव मंदिर में जनपद के क्रांतकारियों की बैठक बन्दूको , रिवाल्वरो , पिस्तौलो एंव भाला गडासो की गगन भेदी टंकार के बीच हुई।  जिसमे अपने नेतृत्व क्षमता तथा अदम्य शाहस के बलपर सूर्यनाथ जिले के कमांडर चुने गये।  इस जत्थे में लगभग पांच सौ नवजवान 150 रिवाल्वरो , पिस्तौलो के साथ प्राणों को न्यवछावर करने के लिए निकल पड़े थे। इस जथे का आतंक इतना था कि अग्रेजी और दो - चार थाने मुडभेड करने से कतराते थे।  नेदरसोल कमिशनर ने कई बार पकड़ने के लिए अभियान चलाया लेकिन असफलता ही हाथ लगी।  इस जत्थे ने कई बड़े कांड किये।  मछलीशहर तसील पर धावा बोला , सुजानगंज थाना लूटा, सिकरारा में राजा बनारस की छावनी को तहसनहस किया साथ ही कई गोदाम और डाकखाना भी लूटा कर अग्रेजी हुकूमत के नाक में दम कर दिया था।  अग्रेजी शासको ने सूर्यनाथ और उनके साथियों को गोली से उड़ाने का फरमान जारी कर दिया साथ में दस हजार रूपये इनाम भी घोषित किया गया। 


16 अक्टूबर 1942 को कुल्हनामऊ डाकखाना लूटने के बाद कुछ देश द्रोहियों कारण श्री उपाध्याय उनके साथी बैजनाथ सिंह , दुखरन मौर्य , उदरेज सिंह , शिवब्रत सिंह और दयाशंकर के साथ गिरफ्तार हुए।  इन लोगो घर अग्रेजो ने फूंक दिया।  सूर्यनाथ को 30 दिसम्बर 1942 को 7 वर्ष की कठोर सजा सुनाई गई और 100 रूपये अर्थ दण्ड भी लगाया गया।  इसके बाद मडियाहूँ के एक केस में 9 जनवरी 1943 को दो साल की सजा हुई।  कुल मिलकर 24 वर्ष की कठोर कारावास श्री उपाध्याय जी को हुआ था।  सजा काटने के लिए फरवरी 1943 को बनारस सेंट्रल जेल भेजे गये।  इस जेल में 15 दिनों तक अमरण अनशन किया और 6 अप्रैल 1943 को हरदोई रेलवे स्टेशन पर भारत माँ का नारा लगाने के कारण पुलिस से तीखी नोकझोक हुआ गाली देने पर उपाध्याय जी ने  एसपी जेटली  का  सर फोड़ दिया।  जिसके कारण 38 डी आई आर का मुकदमा चला और बरेली जेल से वापस हरदोई लाये गये।  इस जेल में हथकड़ी और बेडी लगने के बावजूद जेल के सिखचो को काटकर भागे किन्तु अंतिम दीवाल पर पकडे गये और इतना पिटे गये कि उनका शरीर मांस का टुकड़ा बनकर रह गया।  जेल में बंद साथियों ने उन्हें मरा समझकर जेलों शोक सभाए हुई।  लेकिन 12 दिन बाद उन्हें होश आ गया था।


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