...........पर मेरे उतने ही दिन थे जितने बीत गये गीतों में’’


साहित्य महारथी व छायावादी महाकवि डा. श्रीपाल का निधन
जिले में शोक की लहर, आज रामघाट पर होगा अंतिम संस्कार
    जौनपुर (सं.) 24 अगस्त। ‘‘कुछ रीतों, कुछ अनरीतों में कुछ दिन बीत गये मीतों में, पर मेरे उतने ही दिन थे जितने बीत गये गीतों में।’’ इन पंक्तियों के रचयिता छायावादी कविता के राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित कवि साहित्य महारथी, साहित्य वाचस्पति जैसे अलंकरणों से अलंकृत कृष्ण द्वैपायन महाकाव्य सहित दर्जनों काव्य खण्डों की रचयिता, गीतों के राजकुमार, तिलकधारी स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डा. श्रीपाल सिंह क्षेम का 89 वर्ष की अवस्था में बुधवार को नगर के रोडवेज स्थित उनके आवास पर निधन हो गया।
    छायावादी कविता के मजबूत स्तम्भ और कृष्ण द्वैपायन महाकाव्य सहित गीत और कविता, नीलमतरी, रूप तुम्हारा प्रीत हमारा, राख और पाटल, मुक्त गीतिका, रूपगंगा तथा प्रेरणा कलश जैसे काव्य खण्डों के रचयिता, श्रृंगार गीतों के राजकुमार डा. क्षेम का जन्म 2 सितम्बर 1922 को जिला मुख्यालय से बदलापुर मार्ग पर स्थित बसालतपुर स्टेट में हुआ था। छात्र जीवन से ही मेधावी रहे स्व. क्षेम हिन्दी के कालजयी रचनाकारों में अपना नाम दर्ज कराकर बुधवार को अपरान्ह अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर लगते ही जनपद का जनमानस जहां शोकाकुल हुआ, वहीं राष्ट्रीय स्तर पर साहित्य जगत में इनकी भरपाई का कोई विकल्प नहीं रह गया।
    हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से जहां स्व. क्षेम को साहित्य महारथी तथा साहित्य वाचस्पति की उपाधि मिली, वहीं इन्हें पूर्वांचल रत्न जैसा सम्मान भी प्राप्त हुआ। तिलकधारी पीजी कालेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त हुये महाकवि डा. क्षेम जीवन के अंतिम क्षण तक मां वीणा पाणी सरस्वती की उपासना करते रहे।
    उनका अंतिम संस्कार गुरूवार को आदि गंगा गोमती के तट पर रामघाट पर होगा। अंतिम संस्कार से पूर्व प्रातः 7 बजे महान साहित्यकार का पार्थिव शरीर तिलकधारी स्नातकोत्तर महाविद्यालय ले जाया जायेगा जहां उन्हें जनमानस सहित छात्र और अध्यापक पुष्प अर्पित कर अंतिम विदाई देंगे।

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