बुनियादी महत्व की चीजें केवल तर्क के सहारे प्राप्त नहीं की जा सकतीं, बल्कि पीड़ा भोग के रूप में मूल्य चुकाकर खरीदनी पड़ती हैं।'
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पिछले दिनों बाबा रामदेव ने जो 'अनशन' शुरू किया था, उससे पहले वह राजघाट Aजाकर महात्मा गांधी के आगे नतमस्तक हुए थे। उससे पहले अन्ना हजारे ने 'उपवास' किया था। कहा गया कि सरकार की नीतियों के विरोध में उन्होंने गांधी के मार्ग का अनुसरण किया और सत्याग्रह का हथियार आजमाया है। और भी कई लोगों के 'उपवास' सामने आए हैं। इसलिए अब यह जानना आवश्यक हो जाता है कि गांधीजी ने सत्याग्रही के लिए किन योग्यताओं का जिक्र किया है। 'यंग इंडिया' के 5 नवंबर 1931 के अंक में गांधीजी ने लिखा था, 'मुझे दिनों-दिन यह विश्वास होता जा रहा है कि लोगों के लिए बुनियादी महत्व की चीजें केवल तर्क के सहारे प्राप्त नहीं की जा सकतीं, बल्कि पीड़ा भोग के रूप में मूल्य चुकाकर खरीदनी पड़ती हैं।'
अगस्त 1942 में उन्होंने एक सत्याग्रही की छह योग्यताएं बताई थीं:
1. उसे सत्य और अहिंसा को अपना धर्म मानते हुए उनमें विश्वास रखना चाहिए और इसी कारण उसकी मानव प्रकृति की अंतर्निहित अच्छाई में भी आस्था होनी चाहिए।
2. उसकी ईश्वर में जीती-जागती आस्था होनी चाहिए क्योंकि वही तो उसका एकमात्र अवलंब है।
3. उसे पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए और अपने ध्येय के लिए अपने जीवन और अपनी संपत्ति को न्योछावर करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
4. उसका विवेक सदा जागृत रहे और चित्त स्थिर रहे।
5. उसे जेल के नियमों का पालन करना चाहिए, सिवाय उन नियमों के, जो उसके आत्मसम्मान को चोट पहुंचाने के लिए विशेष रूप से बनाए गए हों।
6. सत्याग्रह में कपट, मिथ्यात्व या किसी प्रकार के असत्य के लिए कोई स्थान नहीं है। (द बॉम्बे क्रॉनिकल, 9 अगस्त, 1942)। गांधीजी कहते हैं, 'सत्याग्रही भय को हमेशा के लिए छोड़ देता है।' गांधीजी के अनुसार विरोधी बीस बार भी उसको धोखा दें, वह इक्कीसवीं बार उन पर विश्वास करने को तैयार रहेगा। 'सत्याग्रह इन साउथ अफ्रीका' में वह कहते हैं, 'बात यह है कि मानव प्रकृति में अडिग विश्वास ही सत्याग्रही के धर्म का सार है।' (बी. जी. देसाई द्वारा अनूदित, पृष्ठ 159)
गांधीजी एक जगह और कहते हैं, 'जिसमें कानून का पालन करने की सहज वृत्ति न हो, वह सत्याग्रही नहीं। कानून का पालन करने की अपनी प्रकृति के कारण ही वह सर्वोच्च विधि अर्थात अपनी अंतरात्मा की आवाज का निर्द्वंद होकर पालन करता है।' (स्पीचेज ऐंड राइटिंग्स ऑफ महात्मा गांधी, जी. ए. नटेसन एंड कंपनी, मदास, 1933, पृष्ठ 465)
अगस्त 1942 में उन्होंने एक सत्याग्रही की छह योग्यताएं बताई थीं:
1. उसे सत्य और अहिंसा को अपना धर्म मानते हुए उनमें विश्वास रखना चाहिए और इसी कारण उसकी मानव प्रकृति की अंतर्निहित अच्छाई में भी आस्था होनी चाहिए।
2. उसकी ईश्वर में जीती-जागती आस्था होनी चाहिए क्योंकि वही तो उसका एकमात्र अवलंब है।
3. उसे पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए और अपने ध्येय के लिए अपने जीवन और अपनी संपत्ति को न्योछावर करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
4. उसका विवेक सदा जागृत रहे और चित्त स्थिर रहे।
5. उसे जेल के नियमों का पालन करना चाहिए, सिवाय उन नियमों के, जो उसके आत्मसम्मान को चोट पहुंचाने के लिए विशेष रूप से बनाए गए हों।
6. सत्याग्रह में कपट, मिथ्यात्व या किसी प्रकार के असत्य के लिए कोई स्थान नहीं है। (द बॉम्बे क्रॉनिकल, 9 अगस्त, 1942)। गांधीजी कहते हैं, 'सत्याग्रही भय को हमेशा के लिए छोड़ देता है।' गांधीजी के अनुसार विरोधी बीस बार भी उसको धोखा दें, वह इक्कीसवीं बार उन पर विश्वास करने को तैयार रहेगा। 'सत्याग्रह इन साउथ अफ्रीका' में वह कहते हैं, 'बात यह है कि मानव प्रकृति में अडिग विश्वास ही सत्याग्रही के धर्म का सार है।' (बी. जी. देसाई द्वारा अनूदित, पृष्ठ 159)
गांधीजी एक जगह और कहते हैं, 'जिसमें कानून का पालन करने की सहज वृत्ति न हो, वह सत्याग्रही नहीं। कानून का पालन करने की अपनी प्रकृति के कारण ही वह सर्वोच्च विधि अर्थात अपनी अंतरात्मा की आवाज का निर्द्वंद होकर पालन करता है।' (स्पीचेज ऐंड राइटिंग्स ऑफ महात्मा गांधी, जी. ए. नटेसन एंड कंपनी, मदास, 1933, पृष्ठ 465)