शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार क्षार
https://www.shirazehind.com/2011/06/blog-post_27.html
मै
शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार क्षार
डमरू की वह प्रलयध्वनि हूं जिसमे
नचता भीषण संहार
रणचंडी की अतृप्त प्यास मै दुर्गा का उन्मत्त हास,
मै यम की
प्रलयंकर पुकार जलते मरघट का धुँवाधार
फिर अंतरतम की ज्वाला से जगती मे आग लगा
दूं मै
यदि धधक उठे जल थल अंबर जड चेतन तो कैसा विस्मय,
हिन्दु तन मन हिन्दु
जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय,
मै आज पुरुष निर्भयता का वरदान लिये आया
भूपर
,पय पीकर सब मरते आए मै अमर हुवा लो विष पीकर,अधरोंकी प्यास बुझाई है मैने
पीकर वह आग प्रखर,
हो जाती दुनिया भस्मसात जिसको पल भर मे ही छूकर,
भय से
व्याकुल फिर दुनिया ने प्रारंभ किया मेरा पूजन,मै नर नारायण नीलकण्ठ बन गया ,न इसमे
कुछ संशय ,हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय,मै अखिल विश्व का गुरु
महान देता विद्या का अमर दान
मैने दिखलाया मुक्तिमार्ग मैने सिखलाया ब्रह्म
ज्ञान,
मेरे वेदों का ज्ञान अमर मेरे वेदों की ज्योति प्रखर
मानव के मन का
अंधकार क्या कभी सामने सकठका सेहर
मेरा स्वर्णभ मे गेहर, गेहेर सागर के जल मे
चेहेर चेहेर
इस कोने से उस कोने तक कर सकता जगती सौरभ,मै
हिन्दु तन मन हिन्दु
जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय,मै तेजःपुन्ज तम लीन जगत मे फैलाया मैने
प्रकाश
जगती का रच करके विनाश कब चाहा है निज का विकास
शरणागत की रक्षा की है
मैने अपना जीवन देकर
विश्वास नही यदि आता तो साक्षी है इतिहास अमर
यदि आज
देहलि के खण्डहर सदियोंकी निद्रा से जगकर
गुंजार उठे उनके स्वर से हिन्दु की जय
तो क्या विस्मय,हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय,मैंने छाती का
लहु पिला पाले विदेश के सुजित लाल
मुझको मानव मे भेद नही मेरा अन्तःस्थल वर
विशाल
जग से ठुकराए लोगोंको लो मेरे घर का खुला द्वार
अपना सब कुछ हूं लुटा
चुका पर अक्षय है धनागार
मेरा हीरा पाकर ज्योतित परकीयोंका वह राज मुकुट
यदि
इन चरणों पर झुक जाए कल वह किरिट तो क्या विस्मय,हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग
हिन्दु मेरा परिचय,मै वीरपुत्र मेरि जननी के जगती मे जौहर अपार
अकबर के
पुत्रोंसे पूछो क्या याद उन्हे मीना बझार
क्या याद उन्हे चित्तोड दुर्ग मे
जलनेवाली आग प्रखर
जब हाय सहस्त्रो माताए तिल तिल कर जल कर हो गई अमर
वह
बुझनेवाली आग नही रग रग मे उसे समाए हूं
यदि कभि अचानक फूट पडे विप्लव लेकर तो
क्या विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय,
होकर
स्वतन्त्र मैने कब चाहा है कर लूं सब को गुलाम
मैने तो सदा सिखाया है करना अपने
मन को गुलाम
,गोपाल राम के नामोंपर कब मैने अत्याचार किया
कब दुनिया को
हिन्दु करने घर घर मे नरसंहार किया
कोई बतलाए काबुल मे जाकर कितनी मस्जिद
तोडी
भूभाग नही शत शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय,
हिन्दु तन मन हिन्दु
जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय,
मै एक बिन्दु परिपूर्ण सिन्धु है यह मेरा हिन्दु
समाज
मेरा इसका संबन्ध अमर मै व्यक्ति और यह है समाज
इससे मैने पाया तन मन
इससे मैने पाया जीवन
मेरा तो बस कर्तव्य यही कर दू सब कुछ इसके अर्पण
मै तो
समाज की थाति हूं मै तो समाज का हूं सेवक
मै तो समष्टि के लिए व्यष्टि का कर
सकता बलिदान अभयहिन्दु
तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय
शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार क्षार
डमरू की वह प्रलयध्वनि हूं जिसमे
नचता भीषण संहार
रणचंडी की अतृप्त प्यास मै दुर्गा का उन्मत्त हास,
मै यम की
प्रलयंकर पुकार जलते मरघट का धुँवाधार
फिर अंतरतम की ज्वाला से जगती मे आग लगा
दूं मै
यदि धधक उठे जल थल अंबर जड चेतन तो कैसा विस्मय,
हिन्दु तन मन हिन्दु
जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय,
मै आज पुरुष निर्भयता का वरदान लिये आया
भूपर
,पय पीकर सब मरते आए मै अमर हुवा लो विष पीकर,अधरोंकी प्यास बुझाई है मैने
पीकर वह आग प्रखर,
हो जाती दुनिया भस्मसात जिसको पल भर मे ही छूकर,
भय से
व्याकुल फिर दुनिया ने प्रारंभ किया मेरा पूजन,मै नर नारायण नीलकण्ठ बन गया ,न इसमे
कुछ संशय ,हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय,मै अखिल विश्व का गुरु
महान देता विद्या का अमर दान
मैने दिखलाया मुक्तिमार्ग मैने सिखलाया ब्रह्म
ज्ञान,
मेरे वेदों का ज्ञान अमर मेरे वेदों की ज्योति प्रखर
मानव के मन का
अंधकार क्या कभी सामने सकठका सेहर
मेरा स्वर्णभ मे गेहर, गेहेर सागर के जल मे
चेहेर चेहेर
इस कोने से उस कोने तक कर सकता जगती सौरभ,मै
हिन्दु तन मन हिन्दु
जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय,मै तेजःपुन्ज तम लीन जगत मे फैलाया मैने
प्रकाश
जगती का रच करके विनाश कब चाहा है निज का विकास
शरणागत की रक्षा की है
मैने अपना जीवन देकर
विश्वास नही यदि आता तो साक्षी है इतिहास अमर
यदि आज
देहलि के खण्डहर सदियोंकी निद्रा से जगकर
गुंजार उठे उनके स्वर से हिन्दु की जय
तो क्या विस्मय,हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय,मैंने छाती का
लहु पिला पाले विदेश के सुजित लाल
मुझको मानव मे भेद नही मेरा अन्तःस्थल वर
विशाल
जग से ठुकराए लोगोंको लो मेरे घर का खुला द्वार
अपना सब कुछ हूं लुटा
चुका पर अक्षय है धनागार
मेरा हीरा पाकर ज्योतित परकीयोंका वह राज मुकुट
यदि
इन चरणों पर झुक जाए कल वह किरिट तो क्या विस्मय,हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग
हिन्दु मेरा परिचय,मै वीरपुत्र मेरि जननी के जगती मे जौहर अपार
अकबर के
पुत्रोंसे पूछो क्या याद उन्हे मीना बझार
क्या याद उन्हे चित्तोड दुर्ग मे
जलनेवाली आग प्रखर
जब हाय सहस्त्रो माताए तिल तिल कर जल कर हो गई अमर
वह
बुझनेवाली आग नही रग रग मे उसे समाए हूं
यदि कभि अचानक फूट पडे विप्लव लेकर तो
क्या विस्मय
हिन्दु तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय,
होकर
स्वतन्त्र मैने कब चाहा है कर लूं सब को गुलाम
मैने तो सदा सिखाया है करना अपने
मन को गुलाम
,गोपाल राम के नामोंपर कब मैने अत्याचार किया
कब दुनिया को
हिन्दु करने घर घर मे नरसंहार किया
कोई बतलाए काबुल मे जाकर कितनी मस्जिद
तोडी
भूभाग नही शत शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय,
हिन्दु तन मन हिन्दु
जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय,
मै एक बिन्दु परिपूर्ण सिन्धु है यह मेरा हिन्दु
समाज
मेरा इसका संबन्ध अमर मै व्यक्ति और यह है समाज
इससे मैने पाया तन मन
इससे मैने पाया जीवन
मेरा तो बस कर्तव्य यही कर दू सब कुछ इसके अर्पण
मै तो
समाज की थाति हूं मै तो समाज का हूं सेवक
मै तो समष्टि के लिए व्यष्टि का कर
सकता बलिदान अभयहिन्दु
तन मन हिन्दु जीवन रग रग हिन्दु मेरा परिचय