चन्द्रमा व सूर्य के बीच में पृथ्वी के आने आने पर होता है चन्द्र ग्रहण

वैज्ञानिक भाषा में जब सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा आता है तो सूर्य ग्रहण पड़ता है। चंद्रमा छोटा होता है, इसलिए सूर्य ग्रहण की अवधि बहुत थोड़ी होती है और पूर्ण सूर्यग्रहण बहुत कम ही लगता है। पूर्ण सूर्य ग्रहण की अवधि अधिक से अधिक 7 मिनट से 11 मिनट हो सकती है। भारतीय ज्योतिष धर्म दर्शन और विज्ञान भी यही बात कहता है कि राहु और केतु के क्रमशः चंद्रमा और सूर्य के निगल जाने से सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण पड़ता है। बता दें कि केतु और राहु ग्रह न होकर छाया ग्रह हैं अर्थात वह बिंदु जहां सूर्य पृथ्वी और चंद्रमा के आपस में बीच में आ जाने से छाया पड़ती है। उसी स्थान पर राहु और केतु ग्रह को विद्यमान माना जाता है।

इस प्रकार भारत का धर्म दर्शन और ज्योतिष तथा अध्यात्म वैज्ञानिक रूप से अधिक प्रभावी है और प्रामाणिक भी है। ऐसा माना जाता है कि महाभारत काल में अभी तक का सबसे लंबा सूर्यग्रहण हुआ था। जब धरती पर पूरी तरह संध्या काल के समय अंधेरा हो गया था। जैसे कि इस समय का आज का सूर्य ग्रहण लग रहा है और उसी दौरान अर्जुन ने जयद्रथ का वध कर दिया था जो यह समझ बैठा था कि सूर्य डूब चुका है। जब चंद्रमा और सूर्य के बीच में पृथ्वी आती है तब चंद्रग्रहण पड़ता है, क्योंकि पृथ्वी चंद्रमा से बहुत बड़ी है और इसकी छाया भी बहुत बड़ी होती है, इसलिए चंद्रग्रहण अधिक बार पड़ता है। लंबी अवधि का होता है और पूर्ण चंद्रग्रहण भी बार-बार पड़ता है।
भारत के सभी धार्मिक आध्यात्मिक दार्शनिक प्राकृतिक और पर्यावरण संबंधी बातों को दुनिया का सारा ज्ञान विज्ञान अब मान चुका है। ग्रहण के दौरान अनेक हानिकारक सूर्य की किरणें और वायुमंडल की गैस से मिलकर प्रभाव डालती हैं, इसीलिए इस समय सोना नहीं चाहिए। भोजन नहीं करना चाहिए। कोई भी चाकू छुरी धारदार चीज का प्रयोग नहीं करना चाहिए। सुई में धागा नहीं डालना चाहिए और संभव हो सके तो कुछ तरल पदार्थ भी नहीं पीना चाहिए, क्योंकि इसमें हानिकारक और विषैले तथा रेडियोएक्टिव तत्व मिल जाते हैं जो शरीर को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं। ऐसा प्रायोगिक रूप में देखा गया है कि जिन गर्भवती स्त्रियों ने चाकू छुरी का प्रयोग गर्भावस्था में किया अथवा सो गये, उनके बच्चे अंग—भंग विकलांग ही पैदा हुये। किसी का कान कट गया तो किसी का नाक चढ़ गई। इस तरह की तमाम प्रामाणिक बातें विद्यमान है।
चंद्रमा पृथ्वी से बहुत छोटा और सूर्य से करोड़ों गुना अधिक छोटा है लेकिन यह पृथ्वी के अत्यधिक निकट लगभग 400000 किलोमीटर की दूरी पर होने से सूर्य से भी अधिक प्रभावी भूमिका पृथ्वी पर और समुद्र तथा अन्य घटनाओं पर डालता है जबकि सूर्य पृथ्वी से 150000000 किलोमीटर से अधिक दूरी पर है, इसलिए इसका प्रभाव चंद्रमा से हल्का पड़ता है। चाहे जवार भाटा हो, चाहे ग्रहण हो, चाहे पृथ्वी पर पड़ने वाला प्रभाव, इसलिए यह बहुत बड़ा होकर भी बहुत प्रभावी भूमिका नहीं निभा पाते हैं। वैज्ञानिक तथ्य अभी बताते हैं कि हर वर्ष चंद्रमा पृथ्वी से 2 से 5 सेंटीमीटर दूर जा रहा है। यदि किसी बात का कोई महत्व नहीं है, क्योंकि ऐसा करने में अरबों वर्ष लग जाएंगे तब तक चंद्रमा सूर्य पृथ्वी का विनाश हो जाएगा। चंद्रग्रहण काला, लाल, भूरा और कोका कोला के जैसा लगता है। चंद्रग्रहण को खुली आंखों से देखा जा सकता है, फिर भी अपने राशि और पंचांग का अध्ययन करके चंद्र ग्रहण देखना चाहिए और नुकसान हो सकता है।
जिस तरह किसी कमरे में विषैली गैस छोड़ देने से असर होता है या तेजाब के जमीन में डाल देने पर असर होता है। सुगंध किसी कमरे में बिखेर देने से असर होता है, उसी तरह सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण पर तमाम प्रकार की वायुमंडल की प्लाज्मा सूर्य के सूर्य तथा चंद्रमा पर पड़ने वाले उसके प्रकाश और चंद्रमा के तापमान के अंतर तथा  कॉस्मिक अर्थात ब्रह्मांडीय किरणों अल्फा बीटा गामा इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन न्यूट्रॉन और रेडियोएक्टिव तत्व के कारण अंतरिक्ष में और धरती पर भयानक परिवर्तन होते हैं जो अत्यधिक खतरनाक होते हैं। इनकी क्रिया प्रक्रिया से ऐसे रासायनिक पदार्थ बनते हैं जो शरीर के लिए अत्यंत ही भयंकर होते हैं। जिसे बीमारियां कैंसर, टीवी तक हो सकती है, इसीलिए ग्रहण का देखना वर्जित है। विशेषकर सूर्यग्रहण तो देखना ही नहीं चाहिए, क्योंकि सूर्य तो अपनी जगह पर ही विद्यमान है। केवल चंद्रमा की छाया उसको रोक रही है, इसलिए आंख सहित पूरे शरीर का भयानक नुकसान निश्चित होता है। गर्भावस्था में तो बिल्कुल है। सूर्य ग्रहण नहीं देखना चाहिए। चाकू छुरी का प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि लोहे पर बहुत जल्दी क्रिया प्रतिक्रिया होती हैं जबकि तुलसी के पत्ते सूर्य ग्रहण के प्रभाव को पूरी तरह से सोख लेता है।
अगर जरूरी हो तो इस समय तुलसी की पत्तियां भोजन अथवा पानी या दूध में डालकर तब उसका प्रयोग करना चाहिए। अगर तुलसी की पत्ती ना मिले तो दूध डालकर भी जलपान भोजन इत्यादि बहुत जरूरी होने पर किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि कोई रोगी, वृद्ध, पुरुष या स्त्री अथवा छोटे बच्चे इस समय खा पी सकते हैं। उनके लिए कोई निषेध नहीं है। कुल मिलाकर जहां तक संभव हो, ग्रहण के काल तक कुछ भी खाना-पीना नहीं चाहिए। अगर संभव हो तो ग्रहण के कुछ घंटे पहले जो सूतक लगता है, उसमें भोजन करना, सहन करना, जल पीना, चाय इत्यादि पीना या कोई भी काम नहीं करना चाहिए और बाहर भी घूमने चलना नहीं चाहिए।
डा. दिलीप सिंह
मौसम विज्ञानी/ज्योतिष शिरोमणि


चन्द्र ग्रहण 28 अक्टूबर 2023 शनिवार
चंद्रग्रहण सिर्फ और सिर्फ वैज्ञानिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण घटना है। साल का अंतिम चंद्रग्रहण शरद पूर्णिमा के दिन लगने जा रहा है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण रहता है। ऐसे में इस दिन ग्रहण लगना बेहद महत्वपूर्ण रहने वाला है। इस साल का अंतिम चंद्रग्रहण मेष राशि में लगने जा रहा है। ग्रहण का असर सभी राशियों पर दिखाई देने वाला है।

चन्द्र ग्रहण का समय
चंद्रग्रहण 28 अक्टूबर दिन शनिवार देर रात 1 बजकर 5 मिनट से लेकर 2 बजकर 24 मिनट तक रहेगा। यानी यह ग्रहण 1 घंटा 18 मिनट का रहेगा। इस चंद्र ग्रहण का सूतक काल भारत में मान्य होगा।

ग्रहण सूतक काल समय
चंद्रग्रहण का सूतक काल ग्रहण के 9 घंटे पूर्व से शुरु हो जाता है अतः भारतीय समय अनुसार, चंद्रग्रहण का सूतक शाम में 4 बजकर 5 मिनट पर आरंभ हो जाएगा। इस ग्रहण में चंद्र बिम्ब दक्षिण की तरफ से ग्रस्त होगा।

देश—दुनिया में कहां-कहां दिखायी देगा ग्रहण
चंद्रग्रहण भारत, ऑस्ट्रेलिया, संपूर्ण एशिया, यूरोप, अफ्रीका, दक्षिणी-पूर्वी अमेरिका, उत्तरी अमेरिका, कैनेडा, ब्राजील, एटलांटिक महासागर में यह ग्रहण दिखाई देगा। भारत में यह ग्रहण शुरुआत से अंत तक दिखाई देगा।

सूतक काल में न करें ये काम
चंद्रग्रहण का सूतक शाम में 4 बजकर 5 मिनट पर प्रारंभ हो जाएगा। इस दौरान आपको किसी प्रकार का मांगलिक कार्य, स्नान, हवन और भगवान की मूर्ति का स्पर्श नहीं करना चाहिए। इस समय आप अपने गुरु मंत्र, भगवान नाम जप, श्रीहनुमान चालीसा कर सकते हैं। चंद्र ग्रहण- सूतक काल के दौरान भोजन बनाना व भोजन करना भी उचित नहीं है। हालांकि सूतक काल में गर्भवती स्त्री, बच्चे, वृद्ध जन भोजन कर सकते हैं। ऐसा करने से उन्हें दोष नहीं लगेगा। ध्यान रखें की सूतक काल आरंभ होने से पहले खाने पीने की चीजों में तुलसी के पत्ते डाल दें। इसके अलावा आप इसमें कुश भी डाल सकते हैं।

चन्द्र ग्रहण पुण्य काल
चंद्र ग्रहण से मुक्त होने के बाद स्नान- दान- पुण्य- पूजा उपासना इत्यादि का विशेष महत्व है। अतः 29 अक्टूबर सुबह स्नान के बाद भगवान की पूजा- उपासना, दान पुण्य करें। ऐसा करने से चंद्र ग्रहण के अशुभ प्रभाव कम होते हैं।

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