एक एक पल मौत के आगोश में जा रहा है राजेश
https://www.shirazehind.com/2013/09/blog-post_3452.html
जौनपुर। अपने जमाने के ख्यातिलब्ध पहलवान रहे दुखरन का एकलौता पुत्र आज जीवन और मौत के बीच संघर्ष कर रहा है जिसके लिये प्रार्थना करने वालों में उसकी पत्नी के अलावा 4 अबोध संतान एवं एक बिन ब्याही बहन है। जौनपुर, वाराणसी, इलाहाबाद से लेकर सूबे की राजधानी तक के सरकारी एवं गैरसरकारी अस्पतालों का चक्कर लगाने वाला पीडि़त आज अपने जीने की आस छोड़ चुका है जिसके घर की स्थिति किसी मातमी सन्नाटे से कम नहीं दिख रही है। इस दृश्य को देखकर लोग यही कह रहे हैं कि कल पीडि़त की आंखें सदा के लिये बंद हो जायेंगी तो इस गरीब परिवार का सहारा कौन बनेगा? बता दें कि केराकत क्षेत्र के नरहन गांव निवासी व अपने जमाने के ख्यातिलब्ध पहलवानों में अपनी अलग पहचान रखने वाले स्व. दुखरन पहलवान का पुत्र राजेश यादव 28 वर्ष कैंसर रोग की चपेट में आ गया जिसकी जानकारी परिजनों को पिछले महीने हुई तो इधर-उधर की भाग-दौड़ शुरू हो गयी।
जांचोपरांत पता चला कि राजेश को ब्लड एवं गले का कैंसर है जिसको लेकर चिंतित परिजन जौनपुर से लेकर अन्य जनपदों का चक्कर लगाने के साथ पीजीआई गये तो वहां घर ले जाने की सलाह दी गयी। आर्थिक रूप से पूरी तरह कमजोर राजेश के परिजन चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि हर जगह उनके सामने आर्थिक समस्या मुंह बाये खड़ी हुई है। अपने पति की गम्भीर बीमारी से सुध-बुध खो चुकी पत्नी अपनी 3 पुत्रियों एवं 1 पुत्र (सभी की उम्र 2 से लेकर 6 वर्ष तक के बीच) के अलावा अविवाहित ननद को केवल देख रही है जिससे यही प्रतीत हो रहा है कि पति के न रहने पर मेरा और इन लोगों का सहारा कौन बनेगा? भगवान द्वारा किये गये इस तरह के क्रूर मजाक से जहां एक ओर एक विवाहिता का सुहाग, एक बहन का एकलौता भाई एवं 4 अबोध बच्चों का पिता अपने जीवन की अंतिम सासें गिन रहा है, वहीं दूसरी ओर इस समय घर का चूल्हा तो दूर, शाम के अंधेरे को दूर करने को एक चिराग तक नहीं जल पा रहा है। ऐसे में यदि जिला प्रशासन, किसी जनप्रतिनिधि या स्वंयसेवी संगठन एवं शासन का ध्यान इस गरीब व लाचार परिवार पर पड़ जाय तो घर का एकमात्र चिराग बुझने से शायद बच सकता है।
जांचोपरांत पता चला कि राजेश को ब्लड एवं गले का कैंसर है जिसको लेकर चिंतित परिजन जौनपुर से लेकर अन्य जनपदों का चक्कर लगाने के साथ पीजीआई गये तो वहां घर ले जाने की सलाह दी गयी। आर्थिक रूप से पूरी तरह कमजोर राजेश के परिजन चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि हर जगह उनके सामने आर्थिक समस्या मुंह बाये खड़ी हुई है। अपने पति की गम्भीर बीमारी से सुध-बुध खो चुकी पत्नी अपनी 3 पुत्रियों एवं 1 पुत्र (सभी की उम्र 2 से लेकर 6 वर्ष तक के बीच) के अलावा अविवाहित ननद को केवल देख रही है जिससे यही प्रतीत हो रहा है कि पति के न रहने पर मेरा और इन लोगों का सहारा कौन बनेगा? भगवान द्वारा किये गये इस तरह के क्रूर मजाक से जहां एक ओर एक विवाहिता का सुहाग, एक बहन का एकलौता भाई एवं 4 अबोध बच्चों का पिता अपने जीवन की अंतिम सासें गिन रहा है, वहीं दूसरी ओर इस समय घर का चूल्हा तो दूर, शाम के अंधेरे को दूर करने को एक चिराग तक नहीं जल पा रहा है। ऐसे में यदि जिला प्रशासन, किसी जनप्रतिनिधि या स्वंयसेवी संगठन एवं शासन का ध्यान इस गरीब व लाचार परिवार पर पड़ जाय तो घर का एकमात्र चिराग बुझने से शायद बच सकता है।
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शनिवारीय चर्चा मंच पर ।।
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